जितना बचपन सच उतना ही प्रेम निवेदन भी सच है और प्रेम निवेदन सच है, तभी तो यह चंचल यौवन भी सच है यौवन जो अगर सच होंगे, तो प्रौढ़ वर्ष भी सच होंगे । और प्रौढ वर्ष जब सच होंगे, तो सच होगा उनके संग... कुछ गिरे दात और पोपल मुह और काँपती देह की थरक थरक । तुम गल़गल़ बुढीया बन जाओगी सीना ढलढल ढल जाएगा ये तनें उरुजों कि चोटि जब हाँफ रही होगी थककर और शाम रंग-ए-चमकीला बीता कल बन जाएगा और क्षीण कटी (सम्भव है) इतनी क्षीण न रह पाए सखी और कसे नितम्बों कि तान खतम हो जाए सखी । और सुँढ सी चिकनी जंघा में जब पढी दरारें होंगी हाँ और स्नेहा केश में चांदी कि अनगिनत कतारें होंगी हाँ और प्रिए सारे तब तक दुरी पर छिटक चुकें होंगे तुमसे जो होंगे वह कर्तव्य-बन्धे मृत्यु कि आश में गुमसुम से । तब तुम किसी मुँधेर पे बैठी घुप अंधेरा ताकोगी जिसमें गुम होंगे कितने पल जो बीत गए सालो पहले कुछ याद रहे, कुछ भुल गए नाती-पोतो कि पें-पें में कुछ निपट गए, कुछ झुल गए । फिर तुम गुमसुम सी सीढी पर से धीमी-धीमी सी उतरोगी एक जंग लगा संदुक खीँचकर कुछ-कुछ, कुछ-कुछ ढुँडोगी और हाथ पढेंगे ये ...